Hindi Diwas- Where Are We As Hindi Speaking People..?

आज हिंदी दिवस है। 

पढ़ा मैंने आज का अखबार।

हर वर्ष इसी दिन ही हमें क्यों याद आता है कि 'हिंदी' नाम  की कोई भाषा भी है? 

हर कोई आज ही के दिन क्यों चेतता है? 

माफ करना जरा मुझे, परंतु मुझे तो ऐसा लगता है मानो हिंदी को आज ही के दिन किसी कोने में पड़े गट्ठर में से धूल झाड़ कर निकाला जा रहा है और बताया जा रहा है कि अरे! तुम चिंता ना करो। जिंदा हो, मरने नहीं देंगे तुम्हें। अरे! मरने नहीं तो जीने भी कहां दे रहे हो इसे तुम? 

अक्सर आज ही के दिन लोग अंग्रेजी से इसकी तुलना कर श्रेष्ठ बतलाते हैं। कहते हैं, "कि हमें इससे किसी भी हालत में कमतर नहीं आना चाहिए।" 

पर आप ज्यादा रखने का मौका आखिर देते कहां हो? 

जब देखो तब अंग्रेजी ही तो थोपी गई है। शुरुआती शिक्षा से लेकर माध्यमिक तक। हिंदी भले पीछे छूट जाए पर अंग्रेजी दूर दूर तक पीछा छोड़ने को मजाल है मान जाए। 

अब देखिए न! 11वीं में हिंदी हमारे पास वैकल्पिक विषय के तौर पर होती है, परंतु अंग्रेजी तो हर हाल में लेनी ही पड़ेगी।

किस्सा यहीं नहीं खत्म होता। इसके बाद अधिकांश सरकारी नौकरी की प्रवेश परीक्षा के लिए बैठो, तो वहां भी अंग्रेजी का एक पेपर! आखिर हिंदी की अनिवार्यता तो इस कदर कहीं नहीं देखी गई। आज भी इंजीनियरिंग कि यह मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में उपलब्ध नहीं है| विश्व की अधिकांश अच्छी पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध नहीं है। 

तो फिर काहे का हिंदी का ढोंग और दिखावा? केवल बोलने से काम नहीं जमीनी तौर पर कुछ करने से बात बनेगी। 

ऐसा नहीं कि हिंदी से नफरत करता हूं या अंग्रेजी समझ नहीं आती। गौरतलब है कि हिंदी आज भी मेरी और देश के 42% लोगों की प्रथम भाषा है जो हर दशक बढ़ती ही गई है। परंतु अफसोस! इतनी जनसंख्या द्वारा पसंद किए जाने के बावजूद इतने लोगों द्वारा बोले जाने के बावजूद अंग्रेजी को ही ज्यादा तवज्जो दी जाती है।


Comments

  1. ye bilkul saii baat likhi apne. ab to itna zydaa English hogyaa k Hindi walon ki koi respect nai and unhe judge krtee sab.

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  2. Of course bro educational department play a very important role in it . They impose English on us . it's not bad but there should a parallel scale for hindi beside English

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    1. यहां तो भाई कुछ हिंदी में टिप्पणी के देते।

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  3. गुड जॉब भाई पढ़कर मज़ा आ गया? अपने भाई की एक दिन तरक्की देखना चाहता हूं। पढ़ते पढ़ते कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं- कि हाथ थामे रखना गीतु भाई मेरा इस दुनिया में भीड़ भारी है।
    खो ना जाऊं कहीं यह जिम्मेवारी तुम्हारी है। लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूं।लेकिन अभी के लिए अपनी वाणी की यहीं विराम देता हूं। जय भीम जय भारत।

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  4. बदलाव सृष्टि का नियम है, और जिस तरह इस पृथ्वी पर कोई भी चीज़ स्थाई नहीं है उसी तरह यह भी स्थाई नहीं है।ये वक्त का पहिया है, घूमेगा जरूर।

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